व्याकरण की परिभाषा, अर्थ ,भेद और उदाहरण
व्याकरण क्या है ?
भाषा बोलने और लिखने में गलती न हो, उसे सुनकर दूसरे लोग न इसलिए हम व्याकरण (Vyakaran) पढ़ते हैं। व्याकरण में ध्वनि, शब्द, वाक्य आदि के नियमों पर विचार किया जाता है।
★भाषा बोली जाती है ।
हमारे मुँह से जो बातें निकलती है उनके सबसे छोटे खण्ड को ध्वनि कहते हैं। आ, ग, च, द, प. स आदि एक-एक ध्वनि है। इनका उच्चारण करने से पता चलता है कि ये छोटे-छोटे खण्ड हैं। इनका उच्चारण करके देखें ।
★ भाषा लिखी भी जाती है |
ध्वनियों को लिखने के लिए जो चिह्न बनाये जाते हैं, उन्हें वर्ण कहते हैं। किसी भाषा के वर्षों के समूह को वर्णमाला कहते हैं | आ ,ग ,च ,द प ,स आदि के लिखितरूप को वर्ण कहते हैं।
हम जैसे बोलते हैं, वैसे ही लिखने की कोशिश करते हैं। लेकिन बोली बराबर बदलती जाती है और लेखन उसके पीछे-पीछे चलता है।
★ शब्द एक या एकाधिक ध्वनियों का एक साथ उच्चारण करने पर शब्द बनते हैं।
हर शब्द का कोई न कोई अर्थ होता है।
★ पद : शब्द वाक्य में आने पर पद कहलाते हैं। पद में शब्द के शब्दांश साथ जुड़ा होता है |
★ वाक्य: निश्चित क्रम में एकाधिक पद आकर पूरे अर्थ को व्यक्त करने से वाक्य बनता है।
★ भाषा : आपस में विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए हम भाषा: में वाक्यों का ही प्रयोग करते हैं।
हम व्याकरण के नियमों को जानकर ही भाषा का सही प्रयोग कर सकते हैं। इससे बोलने और लिखने में गलती नहीं होगी। इससे हम अपनी बात को अधिक साफ और सरल ढंग से कह सकेंगे । भाषा के तीन अंग हैं- ध्वनि, शब्द या पद, तथा वाक्य । इन सबके बारे में अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लेना जरूरी है ।
हर ध्वनि का उच्चारण कैसे और कहाँ से होता है ,यह ठीक-ठीक जान लें ताकि उसका उच्चारण आप शुद्ध रूप से कर सकें । इसी प्रकार प्रत्येक वर्ण और अक्षर आप शुद्ध रूप से कर सकें ।
विशेष रूप से मात्राओं और संयुक्त व्यंजनों को शुद्ध लिखना जरूरी है। आपकी हस्तलिपि सुन्दर हो, इसकी कोशिश करें । चन्द्रबिंदु और अनुस्वार का सही प्रयोग करें । कई शब्दों में अनुस्वार का उपयोग होता है, इसका ख्याल रखें | हिंदी में निम्न ध्वनियों का उच्चारण ठीक से सीखना जरूरी है –
ॠ, ऐ, औ, ज, य, ब, व, ल, श, ष, स, क्ष ज्ञ आदि ।
खास बात यह है कि अनेक ध्वनियों का उच्चारण ओड़िआ उच्चारण से भिन्न है। इसे ठीक से समझ लेना चाहिए। ऐसा प्रयत्न करें कि हमारी बोली और लिखित भाषा स्वाभाविक लगे ।
निम्नलिखित बातों पर ध्यान दें
(१) ह्रस्व स्वर और उनकी मात्रा का लघु उच्चारण करें। लेकिन दीर्घस्वर और उनकी मात्राओं का उच्चारण लम्बा करें अथवा बल लगाकर करें।
(२) लिखते समय शब्दों के रूप को ठीक से देखें, उसे याद रखें और सही मात्रा लगाकर लिखें। ऊपरी नजर से शब्द की वर्तनी को देखने से भूलें होती हैं। अतः सावधान रहें ।
(३) हिंदी में ‘ऋ’ का उच्चारण ‘रि’ होता है, ओड़िआ की तरह ‘रु’ नहीं होता। ऐ और औ का उच्चारण मूल स्वर की तरह होता है, ‘अइ’ औ ‘अठ’ की तरह संयुक्त स्वर की तरह नहीं ।
(४) हिंदी में ज और य (इअ) दो ध्वनियाँ हैं। इनका उच्चारण सीखें। ओड़िआ की तरह हिंदी में एक और य ध्वनि नहीं है।
(५) हिंदी में कहाँ पर ‘ब’ और कहाँ पर ‘व’ का प्रयोग होता है, देख लें। व्यवहार करते समय सावधानी बरतें।
(६) हिंदी में ओड़िया वाली ‘ळ’ ध्वनि नहीं है। सब ‘ल’ है।
(७) यह जान लें कि हिंदी में ‘श’ तालव्य है और ‘स’ वर्त्स्य ।
(८) हिंदी में शब्द के अन्त का ‘अ’ उच्चारण नहीं होता, हलन्त उच्चारण होता है । जैसे कमल कलम् ।
(९) प्रत्येक भाषा का अपना एक लहज़ा होता है। यह शब्द और वाक्य दोनों स्तरों पर होता है । रेडियो और टेलिविज़न के कार्यक्रमों से हिंदी बोलने की शैली सीखने का लाभ उठाइए ।
(१०) हिंदी बोलते समय वक्ता या कहनेवाला कभी दीर्घ मात्राओं पर बल देता है तो कभी किसी शब्द पर | इसे बलाघात कहते हैं, जैसे
- राष्ट्रपति’ शब्द का उच्चारण करते समय ‘रा’ पर बल पड़ता है।
- कभी कर्ता पद पर, कभी कर्म पद पर और कभी क्रिया पद पर बल पड़ता है ।
- पूरे वाक्य को एक लहर में बोला जाता है।
- वाक्यों को भी बोलने का ढंग होता है, इसे सीखिए ।
हिंदी की ध्वनियाँ और वर्णमाला
ध्वनियों के लिखित समूह को वर्णमाला कहते हैं। यह हिन्दी की वर्णमाला है-
स्वर | Swar Varn Kise Kahate Hain
स्वर वर्ण किसे कहते हैं ? : स्वर’ वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में मुख विवर से बाहर आती हवा का कहीं कोई अवरोध नहीं होता |
Example :अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
व्यंजन | Vyanjan Varn Kise Kahate Hain
व्यंजन वर्ण किसे कहते हैं ? :व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में मुखविवर से बाहर आती हवा का कहीं न कहीं पूर्ण या आंशिक अवरोध होता है।
‘क’ वर्ग – क ख ग घ ङ
‘च’ वर्ग – च छ ज झ ञ
‘ट’ वर्ग – ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़)
‘त’ वर्ग – त थ द ध न
‘प’ वर्ग – प फ ब भ म
अन्तस्थ (antastha vyanjan)
Examples – य र ल व
ऊष्म (Ushma Vyanjan)
Examples – श ष स ह
संयुक्त व्यंजन – क्ष त्र ज्ञ श्र
अयोगवाह : (ं) अनुसार ‘:’ (विसर्ग)
(अ, इ, उ, ऋ ह्रस्व स्वर और आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ दीर्घस्वर हैं।
- हम अन्य संयुक्त व्यंजन तीन प्रकार से लिखते हैं।
1. पाई वाले वर्ण की पाई हटाकर ; जैसे कच्चा, ग्लानि ।
2. बिना पाई वाले वर्ण में हल मात्रा ( ्) चिट् ठी,हड् डी,पाठ् य ।
3. हुक वाले वर्ण का हुक हटाकर, जैसे पक्का, हफ्ता ।
● कुछ संयुक्त व्यंजन दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं – ट्ट, ड्ड, द्ध, द्र, द्द, द्य, ह्व,ह्र, ह्य,ह्म | इनमें से प्रथम व्यंजन में हल मात्रा (्) देकर लिखने का अभ्यास करें – ट् ट,ड् ड,द् ध,द् भ,द् य,ह् व,ह् ल,ह् य,ह् म
ध्वनियों का उच्चारण | Swar and Vyanjan
★ स्वरों का उच्चारण
स्वरों के उच्चारण में जिहवा ही सक्रिय रहती है। कभी जीभ का अगला भाग, कभी मध्य भाग या कभी पिछला भाग उच्चारण में सहायक होता है। इस प्रकार स्वरों के तीन भेद होते हैं –
- अग्र स्वर – इ, ई, ए ऐ
- मध्य स्वर – अ
- पश्च स्वर – उ ऊ ओ औ आ
स्वरों के उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर स्वर दो प्रकार से उच्चरित होते हैं।
- हस्व स्वर – अ इ उ ऋ
- दीर्घ स्वर आ ई ऊ ए ऐ ओ औ
ह्रस्व स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है। दीर्घ स्वरों के उच्चारण में हस्व स्वरों की तुलना में दुगुना समय लगता है। ‘ऋ’ का उच्चारण स्वर न होकर व्यंजन ‘रि’ की तरह होता है। फिर भी वर्णमाला में यह स्वर के रूप में गृहीत है। इसे हस्वस्वर माना जाता है।
★ व्यंजनों का उच्चारण
व्यंजनों के उच्चारण में उनके स्थान और उच्चारण की चेष्टाएँ या प्रयत्न मुख्य होते हैं।
१ – उच्चारण स्थान : ओठ, दाँत, वर्ल्स, मूर्धा, तालु कण्ठ और काकल स्थान हैं। इनके आधार पर व्यंजन व्योष्ठ्य, दन्त्योष्ठ्य, दंत्य, वर्त्स्य, मूर्धन्य तालव्य, कण्ठ्य और काकल्य होते हैं।
२– उच्चारण प्रयत्न : फेफडों से आनेवाली हवा को विभिन्न रूप देने के लिए उच्चारण अवयव जो प्रयत्न करते हैं उन्हें उच्चारण प्रयत्न कहते हैं।
स्पर्श, स्पर्शसंघर्षी, नासिक्य, पाश्विक, लुण्ठित, उत्क्षिप्त, संघर्षी और अर्द्धस्वर प्रयत्न हैं।
(i) स्पर्श (Sparsh Vyanjan)::मुख विवर में दो स्थानों को ‘स्पर्श’ कहते है।
Example – क, त, प, ब आदि स्पर्श ध्वनियाँ हैं।
(ii) स्पर्श संघर्षी (Sparsh Sangharshi Vyanjan) : मुखविवर में हवा के रुकने के बाद घर्षण के साथ बाहर निकलने को स्पर्शसंघर्षी कहते हैं,
Examples : च, छ, ज, झ
(iii) नासिक्य (Nasikya Vyanjan): हवा के नासिका मार्ग से निकलने से ‘नासिक्य’ ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं,
Examples : ङ, ञ, ण, न, म
(iv) पाश्विक (Parsik Vyanjan) : हवा के जिह्वा के किनारे (पार्श्व) से होकर निकलने से ‘पाश्विक’ ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं,
Examples : ल |
(v) लुण्ठित : जीभ का अग्रभाव मसूड़े के पास दो तीन बार हिलने से लुण्ठित ध्यनि उच्चरित होती है,
जैसे – र |
(vi) उत्क्षिप्त (Uchipt Vyanjan) : जीभ की नोंक उलटकर कठोर तालु से टकराकर आगे की ओर फेंकी जाने से उत्क्षिप्त ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं,
Examples :- ड़ ढ़।
(vii) संघर्षी (Sangharshi Vyanjan): मुख का मार्ग संकीर्ण होने से हवा घर्षण ( रगड़) खाकर निकल से संघर्षी ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं। ऐसी स्थिति में हवा में उष्णता आने से इन्हें ‘उष्म’ ध्वनि भी कहते हैं। श, ष, स ऐसी ध्वनियाँ हैं।
(viii) अर्द्धस्वर (Ardh Swar Vyanjan): इनके उच्चारण में स्वर और व्यंजन दोनों के लक्षण मिलते हैं,
Examples – य और व |
व्यंजनों के उच्चारण के और दो आधार भी हैं –
(i) प्राणत्व और (ii) स्वरतंत्रियों में कम्पन
(i) प्राणत्व या श्वास प्रवाह में शक्ति या मात्रा के आधार पर ध्वनियाँ अल्पप्राण या महाप्राण होती हैं। क अल्पप्राण है। ख महाप्राण है। ह प्राण ध्वनि है।
(ii) स्वरयंत्र की स्वरतंत्रियों में कम्पन के आधार पर ध्वनियाँ अघोष या सघोष होती हैं। क अघोष है, ग सघोष ।