वाक्य विचार
वाक्य जिन पदों को एक साथ बोलकर वक्ता अपना विचार या भाव पूरी तरह व्यक्त करे, उसे वाक्य कहते हैं।
वाक्य के अंग
वाक्य में पद, पदबंध और उपवाक्य आदि अंग रहते हैं। पद वाक्य में प्रयुक्त होने पर शब्द ‘पद’ कहलाता है। पदबंध वाक्य में एकाधिक पद परस्पर संबद्ध होकर एक इकाई के रूप में काम करते हैं। उन्हें ‘पदबंध’ कहते हैं। पदबंध पाँच प्रकार के होते हैं
(i) संज्ञा पदबंध
(ii) विशेषण पदबंध
(ii) सर्वनाम पदबंध
(iv) क्रिया पदबंध
(v) क्रिया विशेषण पदबंध ।
(i) संज्ञा पदबंध : संज्ञा पदबंध संज्ञा का काम करता है। यह तीन प्रकार से बनता है कर्ता पदबंध, कर्म पदबंध, पूरक पदबंध ।
(क) कर्ता पदबंध : रुक रुक कर बोलनेवाला लड़का डर गया ।
लाल घोड़ा दौड़ रहा है ।
गोली से घायल उग्रवादी आदमी अस्पताल में मर गया ।
(ख) कर्म पदबंध : मैंने लाल घोड़ा देखा ।
मैंने लँगड़ाते हुए चलनेवाला लाल घोड़ा देखा ।
(ग) पूरक पदबंध : पूरक पदबंध दो प्रकार के होते हैं –
कर्तापूरक – पण्डित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे ।
कर्मपूरक – हम तुलसीदास को भक्तिकाल का महान सन्त मानते हैं ।
(ii) विशेषण पदबंध : विशेषण पदबंध संज्ञा की विशेषता बनाता है; जैसे –
उसने मुझे बहुत मीठे-मीठे फल खिलाये ।
शिशु का चाँद-सा प्यारा मुखड़ा सबको मोह लेता है।
नालियों में बहता हुआ गंदा पानी खेत में घुस आया।
यह मछली एक किलो भर है ।
सभा में सिर्फ चालीस-पचास आदमी थे
(iii) सर्वनाम पदबंध : सर्वनाम पदबंध सर्वनाम का काम करता है। ऐसे पदबंध में सर्वनाम पहले या बाद में आ सकता है, जैसे –
दैव का मारा वह बर्बाद हो गया ।
लोगों की नजर में गिरे हुए तुम अपने को कैसे संभाल पाओगे ?
जल्दी-जल्दी याद कर लेनेवाला वह अन्त में इनाम जीत लेगा ।
तुम सब कल जल्दी आ जाना ।
मुझ अभागे को कुछ दिन की मुहलत चाहिए।
(iv) क्रिया पदबंध : क्रिया पदबंध क्रिया का काम करता है; जैसे –
मेरी माँ पुरी में रहते समय मन्दिर जाया करती थी। (कालसूचक)
हम बचपन में रोज दादी माँ से कहानियाँ सुना करते थे । (कालसूचक)
वह खा चुका होगा (पक्षसूचक)
तुम्हें वहाँ शरबत पीना चाहिए था। (पक्षसूचक)
बूढ़ा ठीक से चल-फिर सकता है। (दो धातुओं का योग)
तुम मित्रों को उधार दोगे ? (समिश्र क्रिया)
चाय में ज्यादा चीनी डाल दो। (संयुक्त क्रिया)
मुठभेड़ में दो उग्रवादी मारे गये । (वाच्यसूचक)
वह खाना खा रहा होगा। (वृत्तिसूचक)
(v) क्रियाविशेषण पदबंध : यह क्रिया विशेषण का काम करता है। उसमें स्थान, समय, रीति, प्रयोजन, कारण आदि की सूचना मिलती है, जैसे –
बच्चा खुले मैदान में खेल रहा है। (स्थान)
ट्रेन पाँच बजकर पन्द्रह मिनट पर आएगी (समय)
मने बड़ी श्रद्धापूर्वक संत का स्वागत किया। (रीति)
मुझे नौकरी के लिए दुर्गम स्थान पर जाना पड़ा (प्रयोजन) उ
नके अलावा ‘के नीचे’ (संबंधबोधक पदबंध), ‘इसलिए कि (समुच्चयबोधक पदबंध) और ‘हाय रे’ (विस्मयादिबोधक पदबंध) भी होंगे ।
उपवाक्य
जब दो या दो से अधिक छोटे-छोटे वाक्य एक साथ आकर एक वाक्य बनाते हैं, तब प्रत्येक वाक्य को उपवाक्य कहा जाता है। प्रत्येक उपवाक्य में कर्ता और क्रिया का होना आवश्यक है। उपवाक्य के तीन भेद हैं-
(i) समानाधिकरण
(ii) प्रधान
(iii) आश्रित
(i) समानाधिकरण उपवाक्य : जब वाक्य में प्रत्येक उपवाक्य स्वतंत्र होते हैं, समान महत्व रखते हैं, तब वे समानाधिकरण उपवाक्य कहलाते हैं, जैसे –
रजनी गाती है और नाचती है।
‘यहाँ ‘रजनी नाचती है’ समानाधिकरण उपवाक्य है।
(ii) प्रधान उपवाक्य : वाक्य में जिस उपवाक्य का मुख्य स्थान होता है और क्रिया स्वतंत्र होती है, उसे प्रधान या मुख्य उपवाक्य कहते हैं; जैसे
उसने कहा कि मैं कटक जाऊँगा ।
यहाँ ‘उसने कहा’ प्रधान उपवाक्य है।
(iii) आश्रित उपवाक्य : आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य पर आश्रित रहता है, जैसे
जो मेहनत करता है, उसे उसका फल मिलता है।
यहाँ ‘जो मेहनत करता है आश्रित उपवाक्य है।
ये तीन प्रकार के होते हैं
(क) संज्ञा उपवाक्य- इसका प्रयोग प्रधान उपवाक्य की संज्ञा (कर्म पूरक आदि) के स्थान पर होता है; जैसे –
शिक्षक ने कहा कि मैं तुम्हें एक नया पाठ पढ़ाऊँगा ।
(यहाँ प्रधान उपवाक्य की क्रिया कहा’ का कर्म है कि मैं तुम्हें एक नया पाठ पढ़ाऊँगा ।
अतः वह संज्ञा उपवाक्य है।
तुम मुझे यह बताओ कि कक्षा में हल्ला क्यों हुआ ?
(यहाँ प्रधान उपवाक्य की क्रिया ‘बताओ’ के कर्म ‘यह’ का पूरक है कि कक्षा में हल्ला
क्यों हुआ ? अतः वह संज्ञा उपवाक्य है।
(ख) विशेषण उपवाक्य : यह प्रधान उपवाक्य की संज्ञा की विशेषता बताता है; जैसे –
वह लड़का कहाँ है, जो कक्षा में प्रथम आया है ?
यहाँ प्रधान उपवाक्य की संज्ञा ‘लड़का’ की विशेषता बताता है जो कक्षा में प्रथम आया है।
अतः यह विशेषण उपवाक्य है ।
विशेषण उपवाक्य जो, जिसे, जिसमें आदि से शुरू होता है ।
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य : यह प्रधान उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बताता है;
तुम वैसा ही करो, जैसा आदेश दिया जाता है ।
यहाँ प्रधान उपवाक्य की क्रिया ‘करो’ की विशेषता (रीति) बताता है। ‘जैसा आदेश दिया गया है । यह क्रियाविशेषण उपवाक्य है।
क्रियाविशेषण उपवाक्य निम्नलिखित प्रकार के हैं
(i) कालवाचक : उसका आरंभ जब, जब-जब ज्योंही से होता है, जैसे –
जब घण्टी बजी, तब सभी छात्र कक्षा से बाहर आए ।
जब-जब तुम दोनों मिले, तब-तब झगड़ते रहे।
ज्यों ही घण्टी बजी, त्यों ही लड़के बाहर चले आए।
(ii) स्थानवाचक : इसका आरंभ जहाँ, जिधर से होता है; जैसे जहाँ तुम आज खड़े हो, वहाँ कीचड़ भरी हुई थी । मैं जिधर जाता है, तुम भी उधर जाते हो ।
(iii) रीतिवाचक: इसका आरंभ जैसे, जिस प्रकार, मानो से होता है, जैसे –
जैसे ही सिखाया गया था, लड़कियाँ वैसे ही नाचने लगीं।
वह ऐसा गाती है मानो कोयल कूक रही हो।
(iv) परिमाणवाचक: इसका आरंभ ज्यों-ज्यों, जैसे-जैसे, जितना, जहाँ तक से होता है –
मनुष्य की ज्यों-ज्यों कामना बढ़ती है, वह त्यों-त्यों दुःखी रहता है ।
जितना गुड़ डालोगे, लड्डू उतना मीठा होगा ।
जहाँ तक संभव है, हजारों की मदद करते रहे।
(v) कारणवाचक : इसका आरंभ क्योंकि, अगर, ताकि, यद्यपि, चाहे से होता है, उपवाक्य से कारण, शर्त या उद्देश्य का भाव प्रकट होता है; जैसे –
मैं वहाँ जाऊँगा क्योंकि मुझे आमंत्रित किया गया है ।
अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो परिणाम अच्छा नहीं होगा ।
पहले आरक्षण करा लो ताकि रेलयात्रा सहुलियत होगी ।
यद्यपि वह धनवान है, फिर भी कंजूस है।
तुम चाहे मुझे नुकसान पहुँचाओ, पर मैं सच ही बोलूँगा ।
वाक्य के अवयव
वाक्य के दो अवयव होते हैं- (i) उद्देश्य, (ii) विधेय। जिस व्यक्ति या वस्तु के बारे में कोई बात कही जाती है, उसे ‘उद्देश्य’ कहते हैं। उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाता है, उसे ‘विधेय’ कहते हैं ।
उद्देश्य का मुख्य अंश कर्ता है। कर्ता के विस्तार को उद्देश्य का विस्तार कहते हैं। उसी प्रकार कर्म, कर्म के विस्तार, पूरक, पूरक के विस्तार और क्रिया के विस्तार से विधेय का विस्तार होता है ।
उद्देश्य (कर्ता) की रचना निम्न प्रकार से होती है –
संज्ञा से – पत्ता गिरा कौआ बोला ।
सर्वनाम से – वह आया। तुम पढ़ो ।
विशेषण से – अमीरों ने दान दिया ।
क्रियार्थक संज्ञा से – सच बोलना एक महान गुण है।
अव्यय से – तुम्हारी हाँ नहीं, हाँ नहीं हमें दुविधा में डाल देती है ।
कर्ता का विस्तार चार प्रकार से होता है ।
विशेषण से – लाल घोड़ा दौड़ रहा है ।
संबंधबोधक शब्द से – कश्मीर का लाल घोड़ा दौड़ रहा है ।
समानाधिकरण से – दशरथ नन्दन श्रीराम आदर्श राजा थे ।
पदबंध से – कड़ी मेहनत करनेवाले मजदूर देश के विकास में सहायक होंगे ।
विधेय की रचना निम्न प्रकार से होती है –
क्रिया से – गाड़ी आयी ।
कर्म और क्रिया से – उसने फल खाया ।
कर्म, कर्म पूरक और क्रिया से – मैं उसे ईमानदार समझता हूँ ।
कर्म-विस्तार, कर्म, क्रिया-विस्तार और क्रिया से – तुम बासी रोटी वहाँ चुपके से फेंक दो।
विधेय का विस्तार निम्न प्रकार से होता है –
क्रिया और उसके विस्तार से – गाड़ी तेज चलती है।
कर्म और उसके विस्तार से – उसने ताजा रोटी मजे से खाई ।
पूरक और उसके विस्तार से – उसने लंगड़े रामू को पक्का चोर समझ लिया ।
रचना की दृष्टि से वाक्य
रचना की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद हैं –
(i) साधारण या सरल वाक्य
(1) मिश्र वाक्य
(iii) संयुक्त वाक्य
(i) साधारण / सरल वाक्य :इसमें केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, जैसे – मोहन पाठ पढ़ता है।
(ii) मिश्र वाक्य : इसमें एक मुख्य उपवाक्य होता है और एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं । मिश्र वाक्य के आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं।
(क) संज्ञा उपवाक्य :जैसे – मैं चाहता हूँ कि गर्मियों में तुम हमारे घर पर रहो ।
(ख) विशेषण उपवाक्य : जैसे – वह लड़का भाग गया जिसने चोरी की थी ।
(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य : जैसे – मैं तब पहुँचा जब बारिश हो रही थी ।
(ii) संयुक्त वाक्य: जिस वाक्य में एक से अधिक प्रधान उपवाक्य हों उसे संयुक्त उपवाक्य कहते हैं।
(क) उसमें दो सरल वाक्य हो सकते हैं जैसे – तुम यहाँ से जाओ और सोहन को बुलाकर लाओ । (ख) एक सरल तथा एक मिश्र वाक्य हो सकते हैं, जैसे – मेरा यह विचार है कि यदि वर्षा नहीं होगी तो फसल नष्ट हो जाएगी ।
(ग) दो मिश्र वाक्य हो सकते हैं, जैसे- जब तुम पहुंचे तब सब आ रहे थे और जब तुम खाने बैठे, तब बस चली गयी।
वाक्य परिवर्तन
सरल वाक्य – मैने एक बहुत लंबा साँप देखा ।
मिश्र वाक्य – मैंने एक साँप देखा जो बहुत लंबा था ।
सरल वाक्य – सुबह शाम कसरत करनेवाला आदमी इनाम जीत गया ।
मिश्र वाक्य – जो आदमी सुबह शाम कसरत करता था, वह इनाम जीत गया ।
सरल वाक्य – शिशु दूध पीकर सो गया ।
संयुक्त वाक्य – शिशु ने दूध पिया और सो गया ।
सरल वाक्य – कड़ी मेहनत करने पर भी किसान गरीब रहता है।
संयुक्त वाक्य – किसान कड़ी मेहनत करता है, फिर भी वह गरीब रहता है ।
सरल वाक्य – मैं शरीर पर नित्य तेल मलकर नहाता हूँ ।
संयुक्त वाक्य – मैं शरीर पर नित्य तेल मलता हूँ और नहाता हूँ ।
संयुक्त वाक्य – आगे बढ़ो और दुश्मनों का मुकावला करो ।
सरल वाक्य – आगे बढ़कर दुश्मनों का मुकावला करो ।
मिश्र वाक्य – जो छात्र कठिन परिश्रम करते हैं, वे सफल होते हैं।
सरल वाक्य – कठिन परिश्रम करने वाले छात्र सफल होते हैं ।
मिश्र वाक्य – उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ ।
सरल वाक्य – उसने अपने को निर्दोष बताया ।
अर्थ की दृष्टि से वाक्य
अर्थ की दृष्टि से वाक्य के निम्न भेद हो सकते है :
(1) विधानात्मक : जिस वाक्य से क्रिया या कार्य के होने का भाव प्रकट हो, जैसे बच्चे हिन्दी पढ़ते हैं। वे एक अध्यापक हैं।
(2) निषेधवाचक : जिस वाक्य की क्रिया में न होने का भाव हो,
जैसे-राजू ने खाना नहीं खाया । आप ज्यादा न बोलें । वहाँ न तुम जाओ, न वह जाए। तुम देर मत करो ।
(3) आज्ञावाचक : जिस वाक्य से आज्ञा, आदेश, अनुरोध, परामर्श या उपदेश आदि का बोध होता हो,
जैसे – तुम अपना काम करो। तुम सुबह जल्दी उठा करो। यह गरीबों की मदद करें । (4) प्रश्नवाचक : जिस वाक्य से प्रश्न पूछने का बोध हो;
जैसे – क्या आप बाजार जाना चाहते हैं ?
शेर कहाँ रहता है ?
वह लड़का कब लौटेगा ?
(5) इच्छावाचक : जिस वाक्य से इच्छा, कामना, सुझाव, आशिष आदि का बोध हो;
जैसे – भगवान तुम्हारा मंगल करें ।
तुम्हारी उन्नति हो ।
(6) विस्मयबोधक : जिस वाक्य से विस्मय, हर्ष, सुख-दुःख आदि भाव अभिव्यक्त हों जैसे- बड़ा वजन उठा लिया ! हाय वह कितना कष्ट झेलता है ! ! तुमने बड़ा अच्छा काम किया !
(7) सन्देहवाचक : जिस वाक्य से सन्देह या संभावना का बोध हो; जैसे – क्या वह अब तक पहुँच गया होगा ? शायद आज बारिश होगी ।
(8) संकेतवाचक : जिस वाक्य में कोई शर्त (संकेत) पूरी होने की बात कही गई हो; जैसे -वर्षा होती तो अन्न उपजता | तुम पढ़ोगे तो पास होगे ।