विराम चिह्न (Viram Chinh)
विराम चिन्ह की परिभाषा | विराम चिन्ह कितने प्रकार के होते हैं ?
वाक्यों, उपवाक्यों, वाक्यखण्डों अथवा शब्दों के बीच रुकने का नाम विराम है। लिखित सामग्री पढ़ते समय लेखक के अभिप्राय को ठीक ठीक समझने के लिए हम जहाँ रुकते हैं,
वहाँ विराम चिह्न लगाते हैं। ‘विराम चिह्न’ निम्न प्रकार के होते हैं
1. अल्प विराम ,
2. अर्द्ध विराम ;
3. पूर्ण विराम |
4. प्रश्न सूचक चिह्न ?
5. विस्मयादिबोधक चिह्न !
6. विवरण चिह्न :-
7. निर्देशक चिह्न –
8. योजक चिह्न _
9. ‘उद्धरण / अवतरण चिह्न ‘…..’ “……..”
10. लाघव / संक्षेप चिह्न
11. कोष्ठक () {} []
1. अल्प विराम (,)- पढ़ते समय जिस स्थान पर थोड़ा ठहरना हो, वहाँ अल्प विराम लगाया जाता है।
निम्नलिखित स्थितियों में अल्पविराम (,) प्रयुक्त होता है
(i) जब एक ही प्रकार के बहुत से पद (शब्द) या वाक्यांश एक साथ आ जाएँ तो प्रत्येक के बीच में, जैसे –
– काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य को षड़रिपु कहते हैं ।
– जिसका शरीर स्वस्थ हो, हृदय पवित्र हो, बुद्धि निर्मल हो, वाणी में माधुर्य हो, वही सचमुच
(ii) कथन में बल देने के लिए, पदों की पुनरावृत्ति करते समय –
– हाँ, हाँ, आप पुस्तक ले सकते हैं।
(iii) सम्बोधन, बस, सचमुच, वस्तुतः, अत: हाँ, नहीं, अच्छा आदि शब्दों के बाद
– अरे मोहन, इधर आ जा
– वस्तुतः, वह धोखेबाज है।
– हाँ, मैंने यह कहा था ।
(iv) पर, किन्तु, परन्तु, क्योंकि, इसलिए, नहीं तो फिर आदि अव्ययों के पहले
सच बोलो, नहीं तो दण्ड मिलेगा ।
मैं आ नहीं सका, क्योंकि मैं बीमार था ।
(v) उद्धरण के पूर्व
उसने कहा, “मैं आज नहीं खेलूँगा ।”
(vi) किसी पत्र में अभिवादन, अभिनिवेदन करने के बाद
सम्मानास्पद पिताजी, भवदीय,
(vii) एक ही पंक्ति में नाम और पता लिखते समय
माध्यमिक शिक्षा परिषद, ओड़िशा, कटक
(viii) वाक्य में शब्दयुग्मों को अलग-अलग दिखाने के लिए
सुख-दुःख, यश-अपयश, जन्म-मृत्यु सब विधि के अधीन हैं।
2. अर्द्धविराम (;) : जहाँ अल्प विराम की अपेक्षा कुछ अधिक समय तक रुकना पड़ता है, वहाँ इसका प्रयोग होता है ।
(i) मिश्र तथा संयुक्त वाक्यों के उपवाक्यों में विरोधात्मक कथन प्रकट करते समय
– देश का विकास तो हुआ; पर बेरोजगारी आज एक चुनौती बन गयी है ।
– जो तुमसे नफरत करता है; तुम उससे प्यार करो ।
(ii) किसी नियम के उल्लेख के बाद आनेवाले उदाहरण सूचक ‘जैसे’ शब्द के पूर्व
– वचन के दो भेद होते है ; जैसे- एकवचन बहुवचन
(iii) एकाधिक उपाधियों का उल्लेख करते समय, बीच में
– एम.ए; पि-एच : डी ;चित्रकला डिप्लोमा ।
(iv) एक ही मुख्य विषय से संबंधित उपवाक्यों के मध्य में
– वह पगली कभी हँसती थी; कभी रोती थी; कभी आसमान की ओर देखती थी ।
3. पूर्ण विराम (1) : जहाँ किसी बात को कहने का आशय या अभिप्राय पूरा हो गया हो, वहाँ ‘पूर्ण विराम’ लगाया जाता है। प्रश्नवाचक तथा विस्मयबोधक वाक्यों के अतिरिक्त अन्य वाक्यों की समाप्ति पर पूर्ण विराम लगता है। जिन स्थितियों में इसका प्रयोग होता है, वे है –
(i) वाक्य के पूर्ण होने पर- तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखा है ।
(ii) किसी व्यक्ति / वस्तु / घटना / क्रियाव्यापार का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांश के अन्त में, जैसे
– सुसज्जित मंच | मंचपर दो कुर्सियाँ । कुर्सियों के सामने मेज पर गुलदस्ते ।
(ii) दोहे आदि कविता के पहले चरण में पूर्ण विराम की एक पाई (
|) और दूसरे चरण की समाप्ति पर दो पाई (||) लगती है
– मंगल भवन अमंगलहारी ।
द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी ||
4. प्रश्नसूचक चिह्न (?) प्रश्न पूछने के लिए प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में
– क्या तुम बीमार हो ? तुम्हारा भाई कौन है ? तुम कौन हो ?
5. विस्मयादिबोधक चिह्न (!) : यह चिह्न विभिन्न प्रकार के भावों (हर्ष, शोक, घृणा, विस्मय, भय, कामना) को व्यक्त करने के लिए लगाया जाता है –
वाह! तुमने अच्छा किया !
राम ! राम ! मेरे सामने उसका नाम न लो !
हाय विधाता ! यह क्या हो गया !
हे ईश्वर ! उन्हें सद्बुद्धि दें!
6. विवरण चिह्न (:-) : जब एक सामान्य बात कहकर, उसके बाद उसका विवरण क्रम से दिया जाता है तब यह चिह्न लगाया जाता है।
लिंग के दो भेद हैं :- पुंलिंग और स्त्रीलिंग
7. निर्देशक चिह्न (-) : वाक्य में किसी पद का अर्थ अधिक स्पष्ट करने के लिए निर्देशक चिह्न का प्रयोग होता है।
(i) किसी कथन की व्याख्या के लिए –
मनुष्य कम से कम दो चीजें चाहता है- सुख और शान्ति ।
(ii) वार्तालाप में किसी के कथन को उद्धृत करने के पूर्व –
शिक्षक-पृथ्वी सूर्य के चारों और क्यों घूमती है ?
(iii) शब्द विशेष पर बल / जोर देने के लिए –
ये नेता – अपने उत्तरदायित्व के प्रति उदासीन नेता-देश को अंधकार में ढकेल देंगे ।
(iv) किसी अवतरण के बाद लेखक के नाम के पहले –
“स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।” – लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ।
8. योजक चिह्न (-) : निम्नलिखित स्थितियों में इसका प्रयोग होता है
(i) द्वन्द्व समास में -फल-फूल, तन-मन-धन, जीवन-मरण ।
(ii) एकार्थक शब्दों के बीच -समझ-बूझ, भोग-विलास, खाना-पीना
(iii) (का/ की / के) के बदले दो शब्दों के बीच – राम-लीला, कहानी-संग्रह, भाषा-कौशल |
(iv) शब्दों की द्विरुक्ति में – घर-घर ,चलते-चलते, कभी-कभी, धीरे-धीरे ।
(v) पुनरुक्त शब्द के मध्य आए का, न, ही, से आदि के पहले एवं बाद में -ज्यों-का-त्यों, कोई- न -कोई, मन-ही-मन, कम-से-कम |
9. उद्धरण / अवतरण चिह्न (‘…’ / ‘… “) इसके दो रूप होते हैं – एकल (‘….’) और युगल (“…… “) निम्नलिखित स्थितियों में इनका प्रयोग किया जाता है
(i) किसी व्यक्ति का उपनाम या पुस्तक का नाम एकल उद्धरण चिह्न के भीतर लिखा जाता है- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने ‘तुलसीदास’ खण्डकाव्य लिखा है ।
(ii) किसी व्यक्ति का कथन ज्यों-का-त्यों उद्धृत करने के लिए युगल उद्धरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है गाँधीजी ने कहा था, “करो या मरो ।”
10.लाघव या संक्षेप चिह्न (0) – जब संक्षेप करने के विचार से पूरा नाम या शब्द न लिखना हो, तो उसका प्रतीक रूप आदि वर्गों का प्रयोग करके प्रत्येक के बाद इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है ।
‘मास्टर ऑफ आर्ट्स’ के लिए एम. ए. (M. A.)
‘बोर्ड ऑफ सैकण्डरी एजूकेशन’ के लिए बी.एस्.ई. (B.S.E.)
11.कोष्ठक () [ ] {} :
उक्त सभी प्रकार के कोष्ठक चिह्नों का प्रयोग सामान्यतः गणित में होता है। भाषा में इनका विशेष व्यवहार है ।
(i) विकल्प या अर्थ को सूचित करने के लिए-
मारुतनन्दन (हनुमान)राम के अनन्य भक्त थे ।
राम ने लंकाधिपति (रावण) को बाण से मारा ।
(ii) क्रमसूचक अंकों या अक्षरों के दोनों ओर
(१) (२) (क) (ख)