कारक विभक्ति ( परसर्ग )
हम जानते हैं :
एक वाक्य में क्रिया-पद के साथ दूसरे पदों का सीधा संबंध होता है। इसके अलावा पदों का पारस्परिक संबंध भी होता है। यह संबंध ‘कारक’ कहलाता है। इस संबंध को जानने के लिए जिन कारक चिह्नों का प्रयोग होता है, उन्हें हिन्दी में विभक्ति या परसर्ग कहा जाता है।
हम यह भी जानते हैं :
हिन्दी में निम्नलिखित कारक और उनके परसर्ग होते हैं :
कारक | परसर्ग |
---|---|
कर्ता (क्रिया को करने या कराने वाला) | (शून्य परसर्ग), ने,से |
कर्म (जिस पर क्रिया का फल पड़ता है) | (शून्य परसर्ग), को |
करण (क्रिया होने का साधन) | से, के द्वारा |
संप्रदान (जिसके हित में क्रिया का संपादन किया जाए) | को, के लिए |
अपादान (क्रिया का जिससे अलग होने का भाव हो) | से |
संबंध (संज्ञाओं के बीच संपर्क) | का, के, की, रा, रे, री, ना, ने नी |
अधिकरण (क्रिया के होने का स्थान या समय ) | में, पर |
. संबोधन (किसी को पुकारने के लिए प्रयुक्त होता है) | हे, अरे आदि |
इनके अलावा कुछ परसर्गीय शब्दावलियों का प्रयोग होता है।
जैसे – के कारण, से पहले, के सामने की ओर की खातिर, के लगभग आदि ।
परसर्गों के प्रयोग
‘ने’ परसर्ग : ध्यान दें कि ‘ने’ परसर्ग केवल कर्ता कारक में आता है। लेकिन कुछ खास अवसरों पर इसका प्रयोग होता है ।
कर्ता के साथ ‘ने’ का प्रयोग कहाँ कहाँ नहीं होता
1. जब क्रिया वर्तमान काल और भविष्यत् काल में होती है तो ‘ने’ नहीं आता ।
जैसे –
गोपाल खेलता है।
मीना गीत गाएगी ।
2. जब क्रिया अकर्मक होती है, तो भूत काल में भी ‘ने’ नहीं आता।
जैसे –
वह आदमी गया ।
लता हँसी ।
3. संयुक्त क्रिया की सहायक क्रिया अकर्मक होने पर ‘ने’ का प्रयोग नहीं होगा ।
जैसे –
वह खा चुका है।
रानी पढ़ नहीं सकी ।
4. क्रिया सकर्मक होने पर भी (i) अपूर्ण भूत, (ii) तात्कालिक भूत और (ii) हेतुहेतु भद् भूत (प्रथम रूप) काल के वाक्यों में ‘ने’ नहीं आएगा ।
जैसे –
(i) हिमांशु गीत गाता था ।
सुजाता कहानी लिखती थी ।
(ii) किसान हल चला रहा था।
बहू रोटी बना रही थी।
(iii) वह पुस्तक देता मैं ले लेता।
गीता पढ़ती तो रीता लिखती ।
‘ने’ का प्रयोग कब होता है
जब क्रिया सकर्मक हो और भूतकाल में हो तब कर्ता पद के साथ ‘ने’ परसर्ग निम्न स्थितियों में लगता है। जैसे –
(1) सामान्य भूत – गोपाल ने केला खाया। माधवी ने केला खाया ।
रमेश ने रोटी खाई। सुमित्रा ने रोटी खाई ।
(ii) आसन्न भूत – माला ने केला खाया है।
रमेश ने जलेबी खाई है।
(iii) पूर्ण भूत – बालकों ने पुस्तक पढ़ी थी ।
सुनीता ने रसगुल्ला खाया था।
(iv) संदिग्ध भूत – सुरेश ने मेला देखा होगा ।
लड़कियों ने खेल देखा होगा ।
(v) सामान्य भूत – सरोज ने पत्र पढ़ा हो ।
सरोज ने चिट्ठी लिखी हो ।
(vi) हेतुहेतुभद् भूत – तुमने पढ़ा होता तो मैंने भी पढ़ा होता ।
राम ने यह सुना होता तो उसने) वैसा काम न किया होता ।
यहाँ ध्यान दें : जब क्रिया अपूर्ण भूत, तात्कालिक भूत और हेतुहेतुभद् भूत (प्रथम रूप) में हो तो कर्ता के साथ ‘ने’ नहीं आता ।
अब निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से देखिए :
लड़के ने लड़कों ने लड़की ने लड़कियों ने | एक केला | खाया । |
लड़के ने लड़कों ने लड़की ने लड़कियों ने | चार केले | खाए । |
लड़के ने लड़कों ने लड़की ने लड़कियों ने | एक रोटी | खाई । |
लड़के ने लड़कों ने लड़की ने लड़कियों ने | चार रोटियाँ | खाईं | |
ध्यान दें : साधारण नियम यह है कि कर्ता के रूप के अनुसार क्रिया का रूप बदलता है। लेकिन ऊपर के वाक्यों में कर्ता के बाद ‘ने’ आया है, इसलिए कर्ता का कोई प्रभाव क्रिया पर नहीं पड़ता ।
अर्थात् क्रिया कर्ता के लिंग, वचन का अनुसरण नहीं करती : बल्कि कर्म के लिंग, वचन का अनुसरण करती है। पुंलिंग और स्त्रीलिंग तथा एकवचन और बहुवचन के अनुसार कर्म के चार भेद होते हैं।
जैसे : केला – केले, मछली – मछलियाँ । अतः उन्हीं के अनुसार क्रियाएँ चार प्रकार की हुई – खाया, खाए खाई खाई
अब इन वाक्यों को देखिए-
लड़के ने लड़कों ने लड़की ने लड़कियों ने | खाया । |
ऊपर के वाक्यों में भी कर्ता के बाद ‘ने’ आया है। परंतु इन वाक्यों में ‘कर्म’ का प्रयोग नहीं हुआ है। इसलिए क्रिया अन्यपुरुष (तृतीय पुरुष एकवचन पुंलिंग में आई हैं। कर्ता पुरुष हो या स्वी, एकवचन में हो या बहुवचन में कोई फर्क नहीं पड़ा है।
निम्नलिखित वाक्यों को देखिए :
माँ ने बूढ़ी ने तुमने लड़के ने मदन ने | बच्चों को लड़कियों को लड़के को लड़की को लड़की को | बुलाया । देखा । खिलाया। हँसाया । पढ़ाया। |
ऊपर के वाक्यों में कर्ता के साथ ‘ने’ और कर्म के साथ ‘को’ आया है। इस स्थिति में क्रिया न तो कर्ता का अनुसरण करती है और न कर्म का । अतः क्रिया अन्य पुरुष एकवचन पुंलिंग में आई है।
‘को’ का प्रयोग
को परसर्ग कर्ता, कर्म, संप्रदान और अधिकरण कारकों में आता है।
कर्ता पद के बाद ‘को’
• नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दीजिए :
मुझे जाना है। तुम्हें तैरना चाहिए । उसे पढ़ना पड़ा । मुझे केला खाना है। गोपाल को रोटियाँ खानी चाहिए | | सुप्रभा को आना पड़ा । हमें दौड़ना पड़ सकता है। आपको लिखना पड़ेगा। तुम्हें केले खरीदने हैं । |
ऊपर के वाक्यों में कर्ता के साथ ‘को’ परसर्ग आया है। जिन वाक्यों में मुझे, तुम्हें, हमें, उसे का प्रयोग हुआ है, वहाँ भी अर्थ की दृष्टि से ‘को’ लगा है (मुझको, तुमको, हमको, उसको) । इन वाक्यों में मुख्य क्रियाएँ ‘ना’ प्रत्ययांत हैं। उससे कर्ता की बाध्यता, औचित्य और आवश्यकता का बोध होता है।
● निम्न वाक्यों में कर्ता शारीरिक भाव (बुखार, प्यास) और मानसिक भाव (गुस्सा) के भोक्ता के रूप में तथा हिन्दी आना, याद होना आदि के ज्ञाता के रूप में आए हैं। इन कर्ताओं के साथ ‘को’ परसर्ग आया है।
बच्चे को बुखार है ।
बच्चे को प्यास लगी |
पिताजी को गुस्सा आया |
मुझे हिन्दी आती है।
तुम्हें यह याद है ?
कर्मकारक में ‘को’
● वाक्य में कर्म के साथ ‘को’ का प्रयोग होता है।
प्राणिवाचक कर्म के साथ को अवश्य आता है, जैसे –
माँ ने बच्चे को दूध पिलाया।
शिक्षक ने छात्रों को पढ़ाया।
किसान ने बैलों को खिलाया। राम गोपाल को देखता है।
● अप्राणिवाचक कर्म में इस उस आदि निर्देशकों द्वारा अधिक बल दिए जाने पर ‘को’
मुखिया ने इस तालाब को खुदवाया है।
कर्मकारक में ‘को’ कहाँ नहीं आता
● अप्राणिवाचक कर्म के साथ ‘को’ नहीं आता, जैसे –
शिक्षक ने इतिहास पढ़ाया।
लड़के ने किताब पढ़ी।
मैंने एक कलम खरीदी ।
सम्प्रदान कारक में ‘को’
● जिसे कुछ दिया जाता है, उसके साथ ‘को’ लगता है, जैसे –
तुम गरीब को अन्न दो ।
मैंने भिखारी को कम्बल दिया।
●’के लिए’ के अर्थ में ‘को’ आता है, जैसे –
हमारे पास खाने को क्या बचा है ?
अब हम नहाने को कहाँ जाएँगे ?
मेरे पास खाने को रोटी भी नहीं है।
●नमस्कार, सलामी, आदर, धन्यवाद, शुभकामना आशीर्वाद, बधाई, प्यार, श्रद्धांजलि आदि शब्दों के योग से ‘को’ आता है ।
जैसे – गुरुजी को नमस्कार ।
बच्चों को बहुत-बहुत प्यार |
जन्मदिवस पर आपको शुभकामनाएँ ।
सहायता के लिए आपको अशेष धन्यवाद ।
अधिकरण कारक में ‘को’
●कालवाचक शब्दों के साथ ‘को’ आता है, जैसे –
तुम इतवार को हमारे घर पर आओ ।
नवम्बर १४ तारीख को बालदिवस मनाया जाता है।
मैं दोपहर को अवश्य पहुँच जाऊँगा ।
●दिशासूचक शब्दों के साथ ‘को’ आता है, जैसे –
थोड़ा आगे जाकर फिर बाएँ को मुड़ जाना।
जरा ऊपर को देखो, मैं यहाँ बैठा हूँ।
देखो, सूरज पश्चिम को जा रहा है।
‘के लिए’ का प्रयोग
सम्प्रदान कारक में ‘के लिए’
● प्रयोजन या उद्देश्य के अर्थ में, जैसे –
पिताजी ने बहू के लिए एक अंगूठी खरीदी ।
मैं अपने लिए जूते खरीदूंगा ।
मोहन पढ़ने के लिए) शहर जाता है।
‘से’ का प्रयोग
‘से’ परसर्ग प्रायः करण और अपादान कारकों में होता है। लेकिन कर्ता, कर्म और अधिकरण में भी इसका प्रयोग होता है ।
कर्ताकारक में ‘से’
भाववाच्य और कर्मवाच्य के कर्ता के साथ ‘से’ का प्रयोग होता है, जैसे-
(i) भाववाच्य – मुझसे चला नहीं जाता।
रोगी से उठा भी नहीं जाता।
कड़ी धूप में बच्चे से दौड़ा नहीं जाता ।
तुमसे क्या हँसा नहीं जाता ?
(ii) कर्मवाच्य – मिठाई हलवाई से बनाई गई है।
मुझसे चाभी खो गयी है।
बुढ़िया से चने नहीं चबाए जा सकते ।
बच्ची से इतना दूध नहीं पिया जाएगा ।
ii) प्रेरणार्थक वाक्यों में प्रेरित कर्ता के साथ ‘से’ का प्रयोग होता है, जैसे –
प्रथम प्रेरणार्थक वाक्यों में
वह अपना काम नौकरों से कराता है।
सुरमा अपनी चिट्ठी लीना से लिखाती है।
द्वितीय प्रेरणार्थक वाक्यों में
यह पत्र मोहन से भिजवाया जाएगा ।
माँ आया से बच्ची को दूध पिलवाती है।
मालिक ने मजदूरों से काम करवाया।
कर्मकारक में ‘से’
कहना, बोलना, पूछना, मिलना, बात करना, प्रार्थना करना अनुरोध करना आदि क्रियाओं के प्राणिवाचक कर्म के साथ ‘से’ का प्रयोग होता है, जैसे –
तुम इस मामले में निदेशक से मिलो।
मुझसे क्या कहना चाहते हो ?
छात्र ने शिक्षक से दो प्रश्न पूछे।
आपसे मेरी यही प्रार्थना है ।
करणकारक में ‘से’
(i) साधनवाचक शब्द के साथ, जैसे –
मैं चाकू से आम काटता हूँ ।
हरीश ने तूलिका से तस्वीर बनाई ।
डाकिया साइकिल से आया।
(ii) रीतिवाचक क्रियाविशेषण के साथ, जैसे –
तुमने भाषण ध्यान से सुना ?
उमानाथ कठिनाई से पास हो गया ।
मैंने धैर्य से समस्या का मुकाबला किया।
चूहा तेजी से भागा।
(iii) कारणवाचक शब्द के साथ, जैसे –
सोनू बुखार से पीड़ित है।
पौधा धूप से सूख गया।
मरीज पीड़ा से तड़प रहा है।
अपादान कारक में ‘से’
(i) अलगाव के अर्थ –
में पेड़ से पत्ते गिरे ।
बन्दूक से गोली चली।
हिमालय से गंगा निकली है ।
आग से दूर रहिए।
(ii) डर के अर्थ में – बच्चा सौंप से डरता है।
(iii) तुलना के अर्थ में – विनोद माधव से लम्बा है।
(iv) दूरी के अर्थ में – कटक से भुवनेश्वर तीस किलोमीटर दूर है।
(v) कालावधि के अर्थ में – वह कल से बीमार है।
(vi) उत्पत्ति के अर्थ में – दूध से दही बनता है।
(vii) रक्षा करने के अर्थ में – पुलिस नागरिकों को बदमाशों से बचाती है।
‘का’ का प्रयोग
(का/के/की, रा/रे/री/ ना/ने/नी)
सम्बंधकारक में ‘का’ परसर्ग का प्रयोग होता है। यह विकारी परसर्ग है। अर्थात् लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार इसमें परिवर्तन होता है।
जैसे – का (पुंलिंग एकवचन), के (पुंलिंग बहुवचन) की (स्त्रीलिंग एकवचन बहुवचन)
यहाँ विशेष रूप से ध्यान देना जरूरी है कि ‘का’ ‘की’ ‘के’ का प्रयोग उसके बाद आने वाले संज्ञा शब्द के लिंग और वचन के अनुसार होता है ।
(1) लिंग – वचन के अनुसार अन्यपुरुष और संज्ञा में का, की, के
उसका भाई | उसकी बहन | उसके बच्चे |
गोपाल का घर | गोपाल की गाय | गोपाल के गाँववाले |
उनका घोड़ा | उनकी बकरी | उनके कपड़े |
बच्चों का खेल | बच्चों की नानी | बच्चों के खिलौने |
(ii) लिंग – वचन के अनुसार उत्तमपुरुष और मध्यमपुरुष में रा, री, रे
जैसे –
मेरा मस्तक | मेरी कमर | मेरे हाथ |
हमारा मकान | हमारी गोशाला | हमारे खेत |
तेरा हार | तेरी कलम | तेरे गहने |
तुम्हारा लड़का | तुम्हारी बेटी | तुम्हारे छात्र |
(iii) लिंग : वचन के अनुसार निजवाचक सर्वनाम – में ना, नी, ने
जैसे – अपना घर अपनी लाठी अपने वैल
‘के’ का परिवर्तित रूप
एकवचन पुंलिंग शब्द के बाद परसर्ग आने से ‘का’ का ‘के’ हो जाता है।
जैसे –
उसका घर – उसके घर में
उनका बच्चा – उनके बच्चे के लिए
अनू का बेटा – अनु के बेटे को
अपना हाथ – अपने हाथ से
अपना घर – अपने घर पर
तेरा नाम – तेरे नाम में
‘के’ एकवचन में आनेवाले सम्मानजनक व्यक्तियों के लिए –
जैसे- उसके पिताजी अपने भाई साहब
आपके गुरुजी हमारे देवता
मेरे मामा हरी के चाचाजी
‘में’ का प्रयोग
हमारे देवता हरि के चाचाजी अधिकरण कारक में निम्नलिखित अर्थों में ‘में’ का प्रयोग होता हैं –
(1) स्थान और भीतर का बोध करने के लिए, जैसे –
कमरे में मेज है।
मेरे मामा गाँव में रहते हैं ।
वह नवीं कक्षा में पढ़ता है।
कटक में बालियात्रा का मेला लगता है।
(2) समय की अवधि बताने के लिए, जैसे –
पिताजी दो दिन में गाँव आ जाएँगे ।
मई के महीने में कड़ी धूप होती है ।
एक साल में छह ऋतुएँ होती हैं।
१९४७ ई. में भारत स्वतंत्र हुआ ।
(3) तुलनात्मक विशेषण बताने लिए,
जैसे –
आदमी – आदमी में अंतर होता है।
दिनेश और विनोद में बहुत अन्तर है।
फूलों में गुलाब सुन्दर होता है ।
उन फूलों की तुलना में इन फूलों में अधिक सुगन्धि है।
(4) मूल्य बतलाने के लिए जैसे –
तुमने कलम कितने में खरीदी ?
मैंने यह रजिस्टर पचास रुपये में खरीदा |
अब आलू प्रति किलो दस रुपये में मिलता है।
‘पर’ का प्रयोग
अधिकरण कारक में निम्नलिखित अर्थों में ‘पर’ का प्रयोग होता है –
(1) ऊपर की स्थिति बतलाने के लिए –
पेड़ पर बंदर बैठा है।
मेज पर किताब है।
(2) दूरी बतलाने के लिए –
कुछ दूरी पर एक तालाब है।
नदी थोड़ी दूरी पर है।
(3) ठीक समय की सूचना देने के लिए –
दो बजकर तीस मिनट पर गाड़ी आएगी।
सही समय पर काम शुरू करो ।
(4) क्रियार्थक संज्ञा के बाद के बाद’ के अर्थ में –
समय होने पर नाटक शुरू होगा ।
आपके वहाँ जाने पर सब खुश हुए।
मेरे कहने पर वह मान गया।
(5) किसी के प्रति या किसी के विषय में प्रतिक्रिया प्रकट करते समय –
मुझ पर भरोसा रखो ।
इस मुद्दे पर आज चर्चा होगी ।
जीवों पर दया करो।